कूनो नेशनल पार्क में चीता मौतें: प्रोजेक्ट चीता पर धक्का, गांधी सागर में स्थानांतरण की तैयारी

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दो घातक चीता मौतें प्रोजेक्ट चीता को झकझोर रही हैं, और वन्यजीव अधिकारी अब गांधी सागर अभयारण्य को वैकल्पिक घर बनाने की तैयारी में हैं। पहला शोक‑दुर्दशा जुलाई 2025 में 8 साल की नामीबियाई मादा नाभा की हुई, जब वह शिकार‑प्रयास के दौरान गंभीर हड्डी‑टूट के कारण मर गई। दूसरा हादसा 15 सितंबर 2025 को 20 महीने की अफ्रीकी मादा चिता ज्वाला के साथ हुआ, जिसे तेंदुए के हमले का संदेह है। यह घटनाक्रम भारत में पुनर्वासित पहले चीता‑प्रजातियों में से दो को खोने की मार है, और इससे परियोजना की दीर्घकालिक टिकाऊपन पर सवाल उठ रहे हैं।
पृष्ठभूमि: प्रोजेक्ट चीता की कहानी
2022 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट चीता का लक्ष्य 1952 में भारत में लुप्त घोषित चीता को फिर से धरती पर लाना था। इस पहल में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), मध्य प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने साझेदारी करके नामीबिया, दक्षिण‑अफ्रीका और संभावित केन्या से चीते लाने की योजना बनायी।
पहले चरण में 2022‑23 में कुल 46 चीतों को कूनो में लाया गया, जिसमें 9 मादा और 7 नर वयस्क शामिल थे। अब तक परियोजना ने 25‑30 शावकों को स्वतंत्र रूप से जंगली जीवन में स्थापित किया है।
घटनाक्रम: नाभा की मौत और ज्वाला की हत्या
जुलाई 2025 में नाभा को शिकार के दौरान बाएं अल्ना और फिबुला हड्डियों में फ्रैक्चर हुआ। वन विभाग के अनुसार, वह तेज़ दौड़ या झटके के कारण घायल हुई, लेकिन तुरंत इलाज के बावजूद स्थिति बिगड़ती रही। पोस्ट‑मार्टम रिपोर्ट आने पर ही वास्तविक कारण निश्चित होगा।
दूसरी तरफ, उत्तम शर्मा ने बताया कि ज्वाला को 15 सितंबर 2025 को शाम 6:30 बजे मृत अवस्था में खोजा गया। ज्वाला को 21 फ़रवरी 2025 को अपनी माँ और तीन भाई‑बहनों के साथ छवि‑रिलीज़ बोमा में छोड़ा गया था। तेंदुए के साथ संभावित मुकाबले को शुरुआती कारण माना गया, लेकिन आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है।
मौजूदा स्थिति और चीतों की जनसंख्या
नाभा की मौत के बाद कूनो में कुल 26 चीतें बची थीं – 9 मादा, 3 नर वयस्क और 14 शावक। ज्वाला की मृत्यु के बाद ये संख्या 25 पर आ गई, जिसमें 9 वयस्क (6 मादा, 3 नर) और 16 भारत‑मूल शावक शामिल हैं। वन विभाग ने कहा कि इनमें से 16 शावक जंगल में स्वतंत्र रूप से शिकार कर रहे हैं और उनका स्वास्थ्य सामान्य है। सभी चीतों को एंटी‑एक्टो‑पैरासिटिक दवा का कोर्स दिया गया है, और दो माताएं (वीरा और निर्वा) अपने शावकों के साथ स्वस्थ दिख रही हैं।
- कुल बचे हुए: 25 चीतें
- वयस्क: 9 (6 मादा, 3 नर)
- स्वतंत्र शावक: 16
- हालिया एंटी‑पैरासिटिक उपचार समाप्त
- आगामी स्थानांतरण: गांधी सागर अभयारण्य
गुंटक‑वार प्रतिक्रियाएँ और भविष्य का रोडमैप
नवीनतम ऑडिट रिपोर्ट में जलवायु‑अनुकूलन, जनसंख्या‑प्रबंधन और पशु‑स्वास्थ्य निगरानी में खामियां उजागर हुईं। विशेषज्ञों ने कहा कि घटना‑आधारित निगरानी को सख्त किया जाना चाहिए, और जॉइन‑ऑफ़‑फ़ोर्स (JOC) जैसे बहु‑संस्थागत समूह की जरूरत है।
केन्या से अगले चरण के चीतों को लाने के लिए तैयारियां चल रही हैं। प्रस्तावित 12‑15 चीतों को कूनो और गांधी सागर के बीच ‘संक्रमण‑क्षेत्र’ में रखा जाएगा, ताकि दोनों स्थानों पर जनसंख्या‑संतुलन बना रहे। साथ ही, बोत्सवाना से दिसंबर 2025 तक और 8‑10 चीतों को लाने की योजना है।
वन्यजीव अधिकारी 1 अक्टूबर 2025 से कूनो नेशनल पार्क को फिर से खोलेंगे, जो मौसमी बंद अवधि के बाद पर्यटन को पुनर्जीवित करेगा। टिकेट‑पॉइंट एहर और पीपलवाड़ी गेट्स से प्रवेश की अनुमति होगी, और सुगमता के लिए अभ्यागत मार्गों को पुन: डिज़ाइन किया गया है।
व्यापक प्रभाव: संरक्षण‑समाज‑आर्थिक परावर्तन
चीता‑परियोजना न सिर्फ जैव विविधता को पुनर्स्थापित करती है, बल्कि स्थानीय समुदाय में रोजगार, पर्यटक‑आधारित आय और जागरूकता भी बढ़ाती है। स्थानीय गाइडों ने बताया कि हर साल कूनो में लगभग 12,000 आगंतुक आते हैं, और उनमें से 60 % चीता दर्शन के लिए आते हैं। इस आंकड़े में गिरावट से स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
पर्यावरणविद् डॉ. अनुज मेहरा का कहना है, “यदि हम इन घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर देंगे, तो पुनर्वासित प्रजातियों की दीर्घ‑जीविता खतरे में पड़ सकती है। हमें वैज्ञानिक‑आधारित प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को तेज़ी से आगे बढ़ाना होगा।”
क्या आगे देखा जा रहा है?
अब तक की जांच से स्पष्ट है कि दोनों मौतें “जैविक कारणों” के अलावा इको‑सिस्टम में प्रतिद्वंद्विता (जैसे तेंदुआ) की भूमिका भी रही होगी। वन्यजीव विभाग ने कहा कि अगले दो महीनों में पोस्ट‑मार्टम रिपोर्ट जारी करेंगे, और परिणाम के आधार पर “सुरक्षा‑जाल” (safety corridors) बनाकर तेंदुए‑संगति को घटाने की योजना है। साथ ही, जनसंख्या‑वृधि मॉडलों को अपडेट किया जाएगा, ताकि भविष्य में समान घटनाओं से बचा जा सके।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रोजेक्ट चीता के लिए यह दो मौतें क्या मायने रखती हैं?
दोनों घटनाएं परियोजना की निगरानी, स्वास्थ्य देखभाल और पारिस्थितिक‑समायोजन में छिद्र दिखाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इनसे सीख लेकर सुरक्षा‑जाल और तेज़ पोस्ट‑मार्टम जांच को लागू किया जाएगा, जिससे भविष्य में समान जोखिम घटाया जा सकेगा।
गांधी सागर अभयारण्य को नई जगह बनाने का कारण क्या है?
कूनो में सघन तेंदुआ‑संभावित जोखिम को देखते हुए, वन विभाग ने गांधी सागर को एक वैकल्पिक पुनर्वास स्थल के रूप में चुना है। यह क्षेत्र अधिक घना शर्कराई वाला है, जहाँ चीते अपने शिकार तकनीकों को बेहतर ढंग से विकसित कर सकते हैं।
स्थानीय लोग इन घटनाओं से कैसे प्रभावित होते हैं?
पर्यटन आय में संभावित गिरावट के कारण स्थानीय गाइड, होटल‑व्यवस्थापक और विक्रेता आर्थिक हानि का डर रखते हैं। वहीं, सफल पुनर्वास से रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होते हैं, इसलिए समुदाय के साथ निरंतर संवाद आवश्यक है।
भविष्य में केन्या से चीते लाने की योजना कब लागू होगी?
केन्या से अगले वर्ष के शुरुआती महीनों में 12‑15 चीतों को लाने की संभावनाएं हैं। इस प्रक्रिया में कूनो और गांधी सागर के बीच दो‑तीन संक्रमण‑क्लस्टर स्थापित किए जाएंगे, जिससे जनसंख्या संतुलन बना रहे।