कूनो नेशनल पार्क में चीता मौतें: प्रोजेक्ट चीता पर धक्का, गांधी सागर में स्थानांतरण की तैयारी

कूनो नेशनल पार्क में चीता मौतें: प्रोजेक्ट चीता पर धक्का, गांधी सागर में स्थानांतरण की तैयारी अक्तू॰, 12 2025

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दो घातक चीता मौतें प्रोजेक्ट चीता को झकझोर रही हैं, और वन्यजीव अधिकारी अब गांधी सागर अभयारण्य को वैकल्पिक घर बनाने की तैयारी में हैं। पहला शोक‑दुर्दशा जुलाई 2025 में 8 साल की नामीबियाई मादा नाभा की हुई, जब वह शिकार‑प्रयास के दौरान गंभीर हड्डी‑टूट के कारण मर गई। दूसरा हादसा 15 सितंबर 2025 को 20 महीने की अफ्रीकी मादा चिता ज्वाला के साथ हुआ, जिसे तेंदुए के हमले का संदेह है। यह घटनाक्रम भारत में पुनर्वासित पहले चीता‑प्रजातियों में से दो को खोने की मार है, और इससे परियोजना की दीर्घकालिक टिकाऊपन पर सवाल उठ रहे हैं।

पृष्ठभूमि: प्रोजेक्ट चीता की कहानी

2022 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट चीता का लक्ष्य 1952 में भारत में लुप्त घोषित चीता को फिर से धरती पर लाना था। इस पहल में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), मध्य प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने साझेदारी करके नामीबिया, दक्षिण‑अफ्रीका और संभावित केन्या से चीते लाने की योजना बनायी।

पहले चरण में 2022‑23 में कुल 46 चीतों को कूनो में लाया गया, जिसमें 9 मादा और 7 नर वयस्क शामिल थे। अब तक परियोजना ने 25‑30 शावकों को स्वतंत्र रूप से जंगली जीवन में स्थापित किया है।

घटनाक्रम: नाभा की मौत और ज्वाला की हत्या

जुलाई 2025 में नाभा को शिकार के दौरान बाएं अल्ना और फिबुला हड्डियों में फ्रैक्चर हुआ। वन विभाग के अनुसार, वह तेज़ दौड़ या झटके के कारण घायल हुई, लेकिन तुरंत इलाज के बावजूद स्थिति बिगड़ती रही। पोस्ट‑मार्टम रिपोर्ट आने पर ही वास्तविक कारण निश्चित होगा।

दूसरी तरफ, उत्तम शर्मा ने बताया कि ज्वाला को 15 सितंबर 2025 को शाम 6:30 बजे मृत अवस्था में खोजा गया। ज्वाला को 21 फ़रवरी 2025 को अपनी माँ और तीन भाई‑बहनों के साथ छवि‑रिलीज़ बोमा में छोड़ा गया था। तेंदुए के साथ संभावित मुकाबले को शुरुआती कारण माना गया, लेकिन आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है।

मौजूदा स्थिति और चीतों की जनसंख्या

नाभा की मौत के बाद कूनो में कुल 26 चीतें बची थीं – 9 मादा, 3 नर वयस्क और 14 शावक। ज्वाला की मृत्यु के बाद ये संख्या 25 पर आ गई, जिसमें 9 वयस्क (6 मादा, 3 नर) और 16 भारत‑मूल शावक शामिल हैं। वन विभाग ने कहा कि इनमें से 16 शावक जंगल में स्वतंत्र रूप से शिकार कर रहे हैं और उनका स्वास्थ्य सामान्य है। सभी चीतों को एंटी‑एक्टो‑पैरासिटिक दवा का कोर्स दिया गया है, और दो माताएं (वीरा और निर्वा) अपने शावकों के साथ स्वस्थ दिख रही हैं।

  • कुल बचे हुए: 25 चीतें
  • वयस्क: 9 (6 मादा, 3 नर)
  • स्वतंत्र शावक: 16
  • हालिया एंटी‑पैरासिटिक उपचार समाप्त
  • आगामी स्थानांतरण: गांधी सागर अभयारण्य

गुंटक‑वार प्रतिक्रियाएँ और भविष्य का रोडमैप

नवीनतम ऑडिट रिपोर्ट में जलवायु‑अनुकूलन, जनसंख्या‑प्रबंधन और पशु‑स्वास्थ्य निगरानी में खामियां उजागर हुईं। विशेषज्ञों ने कहा कि घटना‑आधारित निगरानी को सख्त किया जाना चाहिए, और जॉइन‑ऑफ़‑फ़ोर्स (JOC) जैसे बहु‑संस्थागत समूह की जरूरत है।

केन्या से अगले चरण के चीतों को लाने के लिए तैयारियां चल रही हैं। प्रस्तावित 12‑15 चीतों को कूनो और गांधी सागर के बीच ‘संक्रमण‑क्षेत्र’ में रखा जाएगा, ताकि दोनों स्थानों पर जनसंख्या‑संतुलन बना रहे। साथ ही, बोत्सवाना से दिसंबर 2025 तक और 8‑10 चीतों को लाने की योजना है।

वन्यजीव अधिकारी 1 अक्टूबर 2025 से कूनो नेशनल पार्क को फिर से खोलेंगे, जो मौसमी बंद अवधि के बाद पर्यटन को पुनर्जीवित करेगा। टिकेट‑पॉइंट एहर और पीपलवाड़ी गेट्स से प्रवेश की अनुमति होगी, और सुगमता के लिए अभ्यागत मार्गों को पुन: डिज़ाइन किया गया है।

व्यापक प्रभाव: संरक्षण‑समाज‑आर्थिक परावर्तन

चीता‑परियोजना न सिर्फ जैव विविधता को पुनर्स्थापित करती है, बल्कि स्थानीय समुदाय में रोजगार, पर्यटक‑आधारित आय और जागरूकता भी बढ़ाती है। स्थानीय गाइडों ने बताया कि हर साल कूनो में लगभग 12,000 आगंतुक आते हैं, और उनमें से 60 % चीता दर्शन के लिए आते हैं। इस आंकड़े में गिरावट से स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।

पर्यावरणविद् डॉ. अनुज मेहरा का कहना है, “यदि हम इन घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर देंगे, तो पुनर्वासित प्रजातियों की दीर्घ‑जीविता खतरे में पड़ सकती है। हमें वैज्ञानिक‑आधारित प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को तेज़ी से आगे बढ़ाना होगा।”

क्या आगे देखा जा रहा है?

अब तक की जांच से स्पष्ट है कि दोनों मौतें “जैविक कारणों” के अलावा इको‑सिस्टम में प्रतिद्वंद्विता (जैसे तेंदुआ) की भूमिका भी रही होगी। वन्यजीव विभाग ने कहा कि अगले दो महीनों में पोस्ट‑मार्टम रिपोर्ट जारी करेंगे, और परिणाम के आधार पर “सुरक्षा‑जाल” (safety corridors) बनाकर तेंदुए‑संगति को घटाने की योजना है। साथ ही, जनसंख्या‑वृधि मॉडलों को अपडेट किया जाएगा, ताकि भविष्य में समान घटनाओं से बचा जा सके।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रोजेक्ट चीता के लिए यह दो मौतें क्या मायने रखती हैं?

दोनों घटनाएं परियोजना की निगरानी, स्वास्थ्य देखभाल और पारिस्थितिक‑समायोजन में छिद्र दिखाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इनसे सीख लेकर सुरक्षा‑जाल और तेज़ पोस्ट‑मार्टम जांच को लागू किया जाएगा, जिससे भविष्य में समान जोखिम घटाया जा सकेगा।

गांधी सागर अभयारण्य को नई जगह बनाने का कारण क्या है?

कूनो में सघन तेंदुआ‑संभावित जोखिम को देखते हुए, वन विभाग ने गांधी सागर को एक वैकल्पिक पुनर्वास स्थल के रूप में चुना है। यह क्षेत्र अधिक घना शर्कराई वाला है, जहाँ चीते अपने शिकार तकनीकों को बेहतर ढंग से विकसित कर सकते हैं।

स्थानीय लोग इन घटनाओं से कैसे प्रभावित होते हैं?

पर्यटन आय में संभावित गिरावट के कारण स्थानीय गाइड, होटल‑व्यवस्थापक और विक्रेता आर्थिक हानि का डर रखते हैं। वहीं, सफल पुनर्वास से रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न होते हैं, इसलिए समुदाय के साथ निरंतर संवाद आवश्यक है।

भविष्य में केन्या से चीते लाने की योजना कब लागू होगी?

केन्या से अगले वर्ष के शुरुआती महीनों में 12‑15 चीतों को लाने की संभावनाएं हैं। इस प्रक्रिया में कूनो और गांधी सागर के बीच दो‑तीन संक्रमण‑क्लस्टर स्थापित किए जाएंगे, जिससे जनसंख्या संतुलन बना रहे।

14 टिप्पणि

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    Deepak Singh

    अक्तूबर 13, 2025 AT 08:14

    ये चीतों की मौतें सिर्फ जंगल में हो रही हैं? नहीं। ये तो हमारी नीतियों की अक्षमता का परिणाम है। नाभा की हड्डी टूटने का कारण? उसे अच्छी तरह से ट्रेन नहीं किया गया। ज्वाला की मौत? तेंदुए के साथ संघर्ष का खतरा था, लेकिन उसके लिए सुरक्षा जाल नहीं बनाया गया। ये सब तो बस एक बड़ी भूल है-हमने इन जानवरों को एक अज्ञात वातावरण में फेंक दिया, और फिर उनकी मौत पर रो रहे हैं।

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    Rajesh Sahu

    अक्तूबर 15, 2025 AT 00:40

    हमारे देश में चीता लाना ही गलत था! अफ्रीका से लाए इन जानवरों को यहाँ का जंगल कैसे समझेगा? ये तो बस एक विदेशी निशान है-एक निशान जिसे दिखाने के लिए हमने अपनी धरती को बेच दिया! अगर हमारे पास बाघ हैं, तो फिर चीता की क्या जरूरत? ये सब बस विदेशी बैंकरों और नासा-जैसे बड़े बॉस के लिए फोटो खींचने का नाटक है!

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    Chandu p

    अक्तूबर 15, 2025 AT 03:10

    हम ये नहीं भूल सकते कि ये चीते हमारी धरती के लिए एक नया आशा का प्रतीक हैं। नाभा और ज्वाला की मौत दुखद है, लेकिन उनकी मौत ने हमें सबक सिखाया है। अब हम बेहतर तरीके से तैयार हो रहे हैं-गांधी सागर की योजना, सुरक्षा जाल, और नए चीतों का आगमन। ये सब अभी शुरुआत है। हम गलतियों से सीख रहे हैं, और ये बहुत बड़ी बात है। 🙏

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    Gopal Mishra

    अक्तूबर 15, 2025 AT 06:54

    प्रोजेक्ट चीता के लिए वैज्ञानिक आधार तो बहुत मजबूत है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में एक गंभीर खाई है-स्थानीय समुदाय का समावेश। जब हम गांधी सागर को वैकल्पिक स्थल बना रहे हैं, तो क्या हमने उस क्षेत्र के लोगों को शामिल किया है? क्या हमने उनकी आर्थिक चिंताओं को समझा है? क्या हमने उन्हें इस परियोजना का हिस्सा बनाया है? वैज्ञानिक डिज़ाइन अच्छा है, लेकिन अगर सामाजिक डिज़ाइन खाली है, तो पूरी परियोजना असफल हो सकती है।

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    Swami Saishiva

    अक्तूबर 16, 2025 AT 08:39

    अब तो बस नाम बदल दो-‘प्रोजेक्ट चीता’ नहीं, ‘प्रोजेक्ट नामीबिया’ रखो। ये चीते हमारे देश के लिए नहीं हैं, ये तो विदेशी डॉक्टरों के लैब के ट्रायल हैं। दो मौतें? बस शुरुआत है। अगले महीने और दो चीते मरेंगे। और फिर? फिर तुम एक और अभयारण्य ढूंढोगे। ये बस एक खेल है।

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    Swati Puri

    अक्तूबर 16, 2025 AT 11:54

    कूनो में चीतों की जनसंख्या के लिए जीनेटिक डायवर्सिटी का मॉडलिंग अभी तक अपर्याप्त है। ये चीते सभी एक ही जीनोम बेस्ड पॉपुलेशन से आए हैं-जिसका अर्थ है कि रिस्क ऑफ इनब्रीडिंग डिप्रेशन बहुत अधिक है। गांधी सागर का स्थानांतरण एक अच्छा स्टेप है, लेकिन अगर हम नए जीन पूल को शामिल नहीं करते, तो ये सब एक टेम्पररी सॉल्यूशन होगा।

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    megha u

    अक्तूबर 17, 2025 AT 16:58

    ये सब बस एक बड़ा फ्रॉड है। चीते को लाने का नाम लेकर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए। अब जब चीते मर रहे हैं, तो वो कह रही है कि तेंदुए ने मार डाला। अरे भाई, तेंदुए तो यहाँ से ही हैं! ये तो बस एक बड़ी चाल है-अपनी गलती को जंगल के जानवरों के ऊपर झुका रहे हैं। 😂

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    pranya arora

    अक्तूबर 18, 2025 AT 16:09

    हम इन चीतों को अपने लिए नहीं, बल्कि अपने अहंकार के लिए लाए हैं। उनकी मौत को हम तब तक दुख के रूप में नहीं देख पाएंगे जब तक हम अपने अहंकार को नहीं छोड़ देंगे। क्या हमने कभी सोचा कि ये जानवर शायद यहाँ नहीं रहना चाहते? क्या हमने कभी उनकी आवाज़ सुनी? ये सब संरक्षण नहीं, बल्कि एक अहंकार का प्रदर्शन है।

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    Arya k rajan

    अक्तूबर 20, 2025 AT 08:00

    मैं इन चीतों के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानता, लेकिन जब मैंने कूनो जाकर उन्हें देखा, तो मुझे लगा कि ये जानवर बहुत अकेले हैं। उनकी आँखों में कुछ ऐसा था जैसे वो यहाँ नहीं रहना चाहते थे। अगर हम इन्हें वापस अफ्रीका भेज दें, तो क्या हम उनके लिए अच्छा कर रहे होंगे? या फिर हमें यहाँ उनके लिए एक असली घर बनाना चाहिए? मुझे नहीं पता। लेकिन ये जो हो रहा है, वो बहुत गहरा है।

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    Sree A

    अक्तूबर 20, 2025 AT 09:47

    पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट अभी बाकी है, लेकिन शुरुआती डेटा से लगता है कि नाभा की मौत का कारण फ्रैक्चर के बाद लगातार नेक्रोप्सी और नेक्रोसिस का विकास हुआ। ज्वाला की मौत में तेंदुए का निशान नहीं, बल्कि एक अन्य जानवर का ट्रॉमा था। अभी तक कोई डीएनए प्रूफ नहीं। बेसिक वाइल्डलाइफ मॉनिटरिंग नहीं हुआ।

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    DEVANSH PRATAP SINGH

    अक्तूबर 22, 2025 AT 08:21

    गांधी सागर का चुनाव सही है। यहाँ का घना वन और कम तेंदुए घनत्व चीतों के लिए बेहतर है। लेकिन ये बात भी सामने आनी चाहिए-क्या हमने यहाँ के लोगों को इसके बारे में बताया? क्या हमने उन्हें इस नए अभयारण्य का हिस्सा बनाया? बिना समुदाय के समर्थन के, ये सब बस एक बड़ा बुरा सपना है।

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    SUNIL PATEL

    अक्तूबर 23, 2025 AT 13:25

    ये सब बस एक बड़ा अपराध है। वन विभाग के अधिकारी जिन्होंने ये योजना बनाई, उन्हें तुरंत निलंबित किया जाना चाहिए। ये चीते यहाँ मर रहे हैं, और वो अभी भी पर्यटन खोलने की बात कर रहे हैं? ये लोग जानवरों को नहीं, अपनी तस्वीरों को चाहते हैं। ये अपराधी हैं।

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    Avdhoot Penkar

    अक्तूबर 24, 2025 AT 13:31

    अरे भाई, चीता क्यों लाए? ये तो बस एक बड़ा गलत फैसला है। अगर हमारे पास बाघ हैं, तो फिर चीता की जरूरत क्यों? ये सब बस विदेशी लोगों के लिए बनाया गया है। ये चीते यहाँ नहीं रह सकते। लौट जाओ अफ्रीका में! 😎

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    Akshay Patel

    अक्तूबर 26, 2025 AT 05:53

    ये चीते भारतीय नहीं हैं। ये नामीबिया के हैं। ये एक अंग्रेजी लोगों का नाटक है। भारत के लिए बाघ ही पर्याप्त है। ये चीते यहाँ नहीं रह सकते। ये बस एक विदेशी आक्रमण है। अगर तुम यहाँ चीते रखना चाहते हो, तो अपने घर में रखो। यहाँ की धरती हमारी है।

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