कुवैत में आग से 49 भारतीयों की मौत, एस. जयशंकर ने की सहयोगी से बात
जून, 13 2024
कुवैत में आग की घटना
कुवैत के मंगफ क्षेत्र में एक छः मंजिला इमारत में लगी आग ने 49 लोगों की जान ले ली और 50 से अधिक लोग घायल हो गए। यह आग एक भयंकर हादसा साबित हुई, जिसमें अधिकांश मृतक भारतीय थे। वे यहाँ विदेश में अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए काम कर रहे थे। इस दर्दनाक घटना के तहत इन लोगों की उम्र 20 से 50 वर्ष के बीच थी।
आग की शुरुआत और कारण
आग की शुरुआत रसोई से हुई, जहाँ से धुआं तेजी से फैल गया। सबसे दुःखद बात यह है कि अधिकांश मौतें धुएं के कारण नींद में ही हो गईं, जब लोग गहरी नींद में थे। रात के समय आग के फैलने से बचने का समय भी नहीं मिला, जिससे लोग घबराहट में रास्ता तलाश नहीं सके।
भारत की प्रतिक्रिया
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्थिति से शीघ्र निपटने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कुवैती समकक्ष अब्दुल्ला अली अल-याह्या से बातचीत की। उन्होंने जल्द ही मृतकों के शवों को वापस लाने की प्रक्रिया शुरू करने का आग्रह किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना की समीक्षा की और मृतकों के परिवारों को प्रधानमंत्री राहत कोष से 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की।
मौके पर सहायता
भारत के राजदूत आदर्श सवाईका ने घटनास्थल का दौरा किया और उन अस्पतालों का भी दौरा किया जहाँ भारतीय कामगार भर्ती थे। इनमें से 30 से अधिक भारतीय कामगारों की हालत स्थिर बताई जा रही है। इसके साथ ही, विदेश राज्यमंत्री कीर्ति वर्धन सिंह को कुवैत भेजा जा रहा है ताकि वे घायल लोगों की सहायता कर सकें और मृतकों के शवों को उनके घर भेज सकें।
आग से बचाव कार्य
आग सुबह 6 बजे से पहले लग गई थी। बचाव कार्य में 5 अग्निशमनकर्मी घायल हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों को बचाने का कर्तव्य निभाया। इमारत में 195 कामगार रहते थे, जो कि विभिन्न देशों से थे जिनमें पाकिस्तान, फिलीपींस, मिस्र और नेपाल के नागरिक भी शामिल थे।
कुवैत के अमीर का आदेश
कुवैत के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-जाबेर अल-सबा ने इस घटना की जांच के आदेश दिए हैं और दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया है। यह घटना कुवैत में सुरक्षा संबंधित प्रश्नों को भी उठाती है जहां विदेशी कामगारों की संख्या काफी अधिक है।
भारतीय कामगारों का योगदान
भारत के प्रवासी कामगार कुवैत के विकास और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दुर्घटना ने बहुत से परिवारों को अज्ञान बना दिया है और इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को टाला जा सके।
संवेदना और सहायता
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी संवेदना व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार की आपदाएँ हमें याद दिलाती हैं कि सुरक्षा मानकों को और बेहतर करना कितना आवश्यक है, खासकर जहां प्रवासी श्रमिक रहते और काम करते हैं।
आइए हम सभी इस दुखी समय में परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करें और उम्मीद करें कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों।
Prashant Kumar
जून 14, 2024 AT 21:13ये सब तो हमेशा की बात है। भारतीय मजदूरों की जिंदगी किसी फाइल की तरह है-बस एक नंबर, एक रिपोर्ट, एक आंकड़ा। जब आग लगती है, तो सब रोते हैं। जब नहीं लगती, तो कोई नहीं सोचता।
Prince Nuel
जून 15, 2024 AT 09:09अरे भाई, ये तो बस शुरुआत है! दुनिया भर में भारतीय मजदूरों के लिए ये जिंदगी है-बिना हेलमेट के बिल्डिंग पर चढ़ना, बिना एसएफएम के रसोई में गैस लगाना, और फिर जब मर जाते हैं तो सरकार दो लाख देती है। ये क्या है? बर्बरता या बिजनेस मॉडल?
Sunayana Pattnaik
जून 15, 2024 AT 20:04क्या आपने कभी सोचा है कि ये लोग जिस इमारत में रहते हैं, उसकी बनावट कितनी अवैध है? कुवैत के लोगों को तो बस ये चाहिए कि ये मजदूर अपनी नौकरी करें, और जब बीमार हों तो अपने देश लौट जाएँ। इनकी जिंदगी किसी बिल की तरह है-जब बकाया नहीं होता, तो बंद कर देते हैं।
akarsh chauhan
जून 17, 2024 AT 08:28इस दर्द को देखकर दिल टूट गया। लेकिन हम इसे बस एक खबर के रूप में नहीं देख सकते। हमें अपने घरों में भी इन लोगों के लिए एक जगह बनानी होगी-एक जगह जहाँ उनकी आवाज सुनी जाए, उनकी जिंदगी का सम्मान किया जाए। हम सब एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।
soumendu roy
जून 19, 2024 AT 01:10यह घटना एक व्यवस्थागत विफलता का प्रतीक है। न तो भारत ने अपने प्रवासी कर्मचारियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोबिंग की, न ही कुवैत ने उनके लिए न्यूनतम सुरक्षा मानक बनाए। यह एक न्याय का अभाव है, जिसका उत्तर केवल विधि और नियमों के माध्यम से ही दिया जा सकता है।
Kiran Ali
जून 19, 2024 AT 17:27हर बार जब ऐसा होता है, तो सरकार तुरंत दो लाख देने का नाटक करती है। लेकिन असली सवाल ये है-क्या ये लोग जब जिंदा थे, तो किसने उनकी सुरक्षा की? क्या ये लोग बस एक विदेशी श्रमिक हैं या इंसान? जब तक ये सवाल नहीं पूछे जाएंगे, तब तक ये मौतें जारी रहेंगी।
Kanisha Washington
जून 21, 2024 AT 16:14हमें याद रखना चाहिए कि ये लोग अपने परिवारों के लिए जी रहे हैं। उनके घर में बच्चे हैं, जो स्कूल जाते हैं। उनकी माँ अपने बेटे के लिए रोज दुआ करती हैं। ये कोई आंकड़ा नहीं हैं। ये इंसान हैं। और इंसानों की जिंदगी का मूल्य कभी नहीं गिना जा सकता।
Rajat jain
जून 22, 2024 AT 11:07हम सब इस दुख को शेयर कर रहे हैं। लेकिन अब ये दुख हमें एक काम करने के लिए तैयार कर रहा है-एक ऐसा काम जो भविष्य में किसी और के बच्चे की जान बचा सके। ये नहीं होना चाहिए।