सौर ग्रहण के साथ सरव पितृ अमावस्या 2025: श्राद्ध का शुभ मुहुर्त 11:50 बजे से
सित॰, 22 2025
सरव पितृ अमावस्या और सौर ग्रहण का आध्यात्मिक महत्व
21 सितम्बर 2025 को सूर्य और चाँद की स्थिति ने एक खास घटना बनाई – सौर ग्रहण के साथ सरव पितृ अमावस्या संग हो गई। हिंदू कैलेंडर में पितृपक्ष के 16 दिन पूरे हो रहे थे और आखिरी अंन्ही (अमावस्या) पर पूर्वजों को प्रसाद देने का समय आया। इस दिन को आध्यात्मिक रूप से बहुत बल मिलने का माना जाता है, क्योंकि सौर ग्रहण खुद में एक परिवर्तनशील ऊर्जा लाता है। कई पण्डितों का कहना है कि इस ग्रहण का प्रभाव अनुष्ठानों की शक्ति को बढ़ा देता है, जिससे पितरों को प्रसन्न करने की संभावना और भी अधिक हो जाती है।
हालाँकि भारत में यह ग्रहण दृश्य नहीं था, लेकिन धार्मिक मनोस्थिति पर इसका असर स्पष्ट था। वैदिक ग्रन्थों में कहा गया है कि जब ग्रहण और पितृ तीज़ एक साथ आती है, तो यह समय आत्मा‑शांति, कर्तव्य‑पूर्ति और कर्तव्य‑परायणता के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसी कारण कई परिवार इस दिन विशेष रूप से तैयारियों में जुटे।
श्राद्ध मुहुर्त तथा अनुष्ठान की विस्तृत प्रक्रिया
श्राद्ध करने का सबसे शुभ समय 21 सितम्बर को सुबह 11:50 एएम से दोपहर 1:27 पीएम तक गया। इस अवधि में सूर्य की किरणें मध्यम और शांति‑पूर्ण थीं, जिससे अनुष्ठानों की सफलता में वृद्धि का माना गया। नीचे इस अवधि में किए जाने वाले प्रमुख कार्यों का क्रम दिया गया है:
- रात 12:16 एएम पर अमावस्या तिथि शुरू हुई, इसलिए सुबह की शुद्धता के लिए नहाना अनिवार्य है।
- 11:50 एएम पर जल से स्नान कर, शुद्ध कपड़े पहनें और मन को स्थिर करें।
- तर्पण – जल, दूध, शहद और फल का मिश्रण लेकर अपने पूर्वजों को समर्पित करें।
- श्राद्ध – गाय के गोबर, चारा, दही और कई बार धूप‑दीप के साथ अर्घ्य अर्पित करें। यह चरण सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और उचित मनोस्थिति में करना चाहिए।
- पिंडदान – पिंड (चावल, दाल, घी) को सिराफ़ (गंदे कपड़े) में लपेटकर पितरों को अर्पित करें। यह कर्म का नवीनीकरण है।
- दान‑पुण्य – दान‑पुण्य के रूप में ब्राह्मणों, गरीबों और रोगियों को भोजन या राशि दें। यह पुण्यफल को बढ़ाता है।
- समाप्ति के बाद पूरे घर को दीप जलाकर शान्ति‑पुजा से समाप्त करें।
हर चरण को ध्यान‑योग्य मंत्रों के साथ किया जाता है। कुछ परिवार दक्षिणी भारत में ‘कटोना’ (विशेष त्रिपाद) और उत्तर भारत में ‘कुल्याणी’ (नग्नि) रीति अपनाते हैं। ये रीति‑रिवाज क्षेत्रीय विविधताओं को दर्शाते हैं, पर मूल उद्देश्य एक ही रहता है – पूर्वजों की संतुष्टि।
ज्येष्ठ राशि वालों को इस दिन अधिक लाभ मिलता है, क्योंकि ज्योतिष में सूर्य‑ग्रहण के साथ अनुष्ठान करने से व्यावसायिक उन्नति और स्वास्थ्य में सुधार होता है। जबकि मिथुन या कर्क राशि वालों को परा‑प्रभावों से बचने के लिए अतिरिक्त दान‑पुण्य करने की सलाह दी जाती है।
सूर्य ग्रहण के कारण कई लोग ‘सुतक’ (अशुद्धि) की अवधि को लेकर हिचकिचाते हैं। परंतु पितृ तिथि की महत्ता को देखते हुए पण्डितों ने स्पष्ट किया है कि इस विशेष तिथि में सुतक के नियमों को थोड़ी लचीलापन दी जा सकती है, क्योंकि श्राद्ध इच्छा शक्ति को मजबूत करता है और पितरों को प्रसन्न करता है।
भविष्य में अगला सौर ग्रहण 2026 में आने वाला है, पर इस प्रकार का मंगल–अमावस्या का संग दो साल में फिर नहीं दिखेगा। इसलिए कई परिवारों ने इस अवसर को अपना आध्यात्मिक सफ़र माना और भविष्य में भी इसी तरह की तैयारियों को जारी रखने का संकल्प किया।
यदि आप इस विशेष दिन के अनुष्ठान को सही ढंग से करना चाहते हैं तो स्थानीय पण्डित से परामर्श लें, समय‑सारिणी पर ध्यान दें और शारीरिक व मानसिक शुद्धता रखें। इस तरह आपका श्राद्ध न केवल पारिवारिक कर्तव्य पूरा करेगा, बल्कि आत्मा‑शांति और कर्तव्य‑परायणता का भी स्रोत बनेगा।
Adrija Mohakul
सितंबर 22, 2025 AT 22:49हमारे घर में तो हर साल अमावस्या पर पिंडदान के बाद एक छोटा सा दीप जलाते हैं और बस चुपचाप आँखें बंद कर लेते हैं। कोई मंत्र नहीं, कोई रस्म नहीं। बस एक शांत क्षण। उनकी यादों को समर्पित।
Sukanta Baidya
सितंबर 23, 2025 AT 06:33अरे भाई ये सब तो बस धर्म का बिजनेस है। ग्रहण आया तो पंडित जी का बिल बढ़ जाता है। श्राद्ध करो तो दान दो, दान दो तो फिर एक और गोली चलती है। इतना ज्योतिष और रीति-रिवाज तो बस डर बनाने के लिए है।
Khagesh Kumar
सितंबर 24, 2025 AT 18:32सच बताऊं तो मैंने भी इस साल श्राद्ध किया। सिर्फ चावल, घी, और एक गिलास पानी। बस दिल से सोचा कि अगर वो देख रहे हों तो ये छोटा सा समर्पण उन्हें पसंद आएगा। कोई मंत्र नहीं, कोई दर्शन नहीं। बस एक बेटा अपने पिता को याद कर रहा है।
shruti raj
सितंबर 26, 2025 AT 09:05ये सब ग्रहण और पितृ अमावस्या का जाल है! 🤫 अमेरिका और चीन में तो ये रीतियाँ बिल्कुल नहीं हैं... लेकिन हमारे यहाँ तो अंधविश्वास को बचाए रखने के लिए ये सब चलाया जाता है। गुरु और पंडित तो इसी से खाते हैं। ये तो एक बड़ा धार्मिक ठगी का नेटवर्क है! 🕵️♀️
Dhananjay Khodankar
सितंबर 28, 2025 AT 08:53मैंने इस दिन अपने दादा के लिए एक छोटा सा दान किया - एक गाँव के बच्चों के लिए किताबें खरीदीं। ना तो मैंने तर्पण किया, ना ही कुल्याणी रीति अपनाई। लेकिन जब मैंने उन बच्चों को लिखते देखा, तो मुझे लगा जैसे दादा मुस्कुरा रहे हों। कभी-कभी श्राद्ध दिल से होता है, न कि रस्म से।
Govind Ghilothia
सितंबर 30, 2025 AT 05:01पितृ अमावस्या और सौर ग्रहण का संगम एक ऐसा दिव्य संयोग है, जिसे वैदिक शास्त्रों में अत्यंत पवित्र माना गया है। इस अवसर पर श्राद्ध करने का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा के साथ एक अनंत बंधन की पुष्टि है। ज्योतिषीय रूप से इस दिन की ऊर्जा स्थिरता और प्रतिबिंबित शक्ति से भरी होती है, जिससे पितृ ऋण का निराकरण होता है। यह अवसर अत्यंत दुर्लभ है, और इसे अत्यधिक सम्मान के साथ ग्रहण किया जाना चाहिए।
shyam majji
अक्तूबर 1, 2025 AT 01:14मैंने इस दिन घर पर बैठकर एक गिलास पानी नदी की ओर डाल दिया। बस इतना ही। कोई दान नहीं, कोई पिंड नहीं। बस एक श्वास और एक याद। अगर वो देख रहे हों तो वो जान जाएंगे।
Ritu Patel
अक्तूबर 2, 2025 AT 06:00अरे भाई ये सब तो बस बुद्धिजीवियों का जाल है। तुम्हारे पास नहीं है तो तुम श्राद्ध करते हो, अगर है तो तुम दान करते हो। लेकिन जब तुम्हारे पास नहीं है और तुम दान भी नहीं कर सकते तो तुम क्या करोगे? बस दिल में बैठ जाओ और रो लो। ये सब तो बस एक लोकप्रिय नाटक है।
Deepak Singh
अक्तूबर 2, 2025 AT 06:01अमावस्या की शुरुआत रात 12:16 एएम पर हुई - यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है! लेकिन आपने यह नहीं बताया कि इस समय के बाद चंद्रमा की अवस्था क्या थी? ज्योतिषीय रूप से, चंद्रमा का उदय और अस्त होने का समय निर्धारित करना आवश्यक है, अन्यथा तर्पण का समय अशुद्ध हो जाता है। और ज्येष्ठ राशि के लोगों को लाभ - यह बात भी एक गलत अनुमान है। सूर्य का प्रभाव नक्षत्रों पर निर्भर करता है, राशि पर नहीं। आप जो बता रहे हैं, वह अर्ध-वैदिक धोखा है।
Rajesh Sahu
अक्तूबर 2, 2025 AT 21:09हमारे देश की ये धरोहर किसी विदेशी शक्ति के खिलाफ नहीं हो सकती! ये श्राद्ध, ये पिंडदान - ये हमारी जड़ें हैं! अगर तुम इसे बेकार बता रहे हो तो तुम देशद्रोही हो! हमारे पूर्वजों ने यही रीति बनाई थी - अब तुम इसे नकार रहे हो? ये बात सिर्फ भारतीयों के लिए है! बाकी लोग तो बस इसे नहीं समझ सकते!
Chandu p
अक्तूबर 2, 2025 AT 22:01अगर तुम अपने पूर्वजों को याद करना चाहते हो तो बस एक दिन उनकी बातें सुनो। उनके गाने सुनो। उनके बनाए हुए खाने को खाओ। श्राद्ध नहीं, यादें बनाओ। ❤️
Gopal Mishra
अक्तूबर 4, 2025 AT 07:39मैंने इस दिन अपने दादाजी के लिए एक छोटी सी पुस्तक बनाई - उनकी यादों, उनके गानों, उनके नामों के साथ। उनकी आवाज़ दर्ज की। अमावस्या के दिन मैंने उसे घर के कोने में रख दिया। उनकी आत्मा को बस एक जगह दी। कोई तर्पण नहीं, कोई पिंड नहीं। बस एक बेटा अपने दादा को याद कर रहा है। ये श्राद्ध है। ये दान है। ये अनुष्ठान है।
Swami Saishiva
अक्तूबर 5, 2025 AT 23:43ये सब बकवास है। ग्रहण तो बस एक खगोलीय घटना है। पितृ अमावस्या? बस एक अज्ञान का जाल। तुम जो दान करते हो, वो ब्राह्मण के बेटे के लिए होता है, न कि पितरों के लिए। तुम बस अपने दिल को शांत करने की कोशिश कर रहे हो।
Swati Puri
अक्तूबर 6, 2025 AT 06:54मैंने इस दिन अपने घर के लिए एक नया परंपरा शुरू किया - एक गाँव के बच्चों को लिखने के लिए एक नोटबुक दी। उन्हें लिखने के लिए कहा - अपने पितरों के बारे में। जिन्होंने लिखा, उन्हें एक छोटा सा तारीफी पत्र भेजा। ये श्राद्ध नहीं, ये याद बनाना है। ये विरासत है।
megha u
अक्तूबर 7, 2025 AT 03:51ग्रहण के साथ अमावस्या? ये सब नेटवर्किंग है। 🤫 जब तुम इसे बड़ा बनाते हो, तो तुम्हारे आसपास के सब तुम्हारी बात मानने लगते हैं। असल में ये सब बस एक अंधविश्वास का गेम है। और तुम उसके खिलाड़ी हो। 🌑
pranya arora
अक्तूबर 8, 2025 AT 17:58क्या अगर हम इसे बस एक शांत दिन बना दें - बिना किसी रस्म के? बस एक बार अपने दिल को बोलने दें। कहीं तो वो बैठे होंगे, जो हमें याद कर रहे हों। और शायद वो भी चाहते हों कि हम बस एक शांत श्वास लें।