दिल्ली में पहली बार बादल बीजन का प्रयोग, हवा में धुएँ को हटाने के लिए आज बरसाए जाएंगे कृत्रिम बारिश
अक्तू॰, 28 2025
आज, 28 अक्टूबर 2025, दिल्ली के वातावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने घोषणा की कि शहर का पहला बादल बीजन प्रयोग आज ही होगा — अगर कानपुर से आने वाला विमान जल्दी पहुँच जाए। लेकिन यह बात एक अजीब तरह की है। कुछ घंटे पहले, न्यू केरला ने एक खबर छापी कि दिल्ली ने तीसरा बादल बीजन प्रयोग कर लिया है। एक ही दिन, दो अलग-अलग कहानियाँ। कौन सच है? यह सवाल दिल्ली के लाखों लोगों के मन में उठ रहा है, जो हर सुबह सांस लेने के लिए ब्रीदिंग बैग का सहारा लेते हैं।
क्यों इतना जल्दी? दिल्ली का वायु संकट
दिल्ली का हवा का स्तर इतना खराब हो चुका है कि इसे ‘वायु आपदा’ कहना भी कम है। ऑक्टोबर के अंत तक, PM2.5 का स्तर 450 माइक्रोग्राम/घन मीटर तक पहुँच चुका है — विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा का नौ गुना। बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे, बुजुर्ग अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं, और डॉक्टर बता रहे हैं कि निमोनिया के मामले इस साल 40% बढ़ गए हैं। यही वजह है कि सरकार ने अब वैज्ञानिक तरीकों की ओर मुड़ना शुरू कर दिया है — भले ही वे अभी अनुभवहीन हों।
कौन कर रहा है बादल बीजन? वैज्ञानिक टीम का नक्शा
यह प्रयोग IIT कानपुर की टीम द्वारा चलाया जा रहा है, जिसके साथ भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) जुड़े हुए हैं। उपयोग किया जा रहा विमान — एक Cessna 206-H — जिसे कानपुर से दिल्ली लाया जा रहा है, उसमें सिल्वर आयोडाइड के कण भरे हुए हैं। ये कण बादलों के अंदर बर्फ के क्रिस्टल बनाते हैं, जो बाद में बारिश के रूप में गिरते हैं। यह तकनीक लगभग 80 साल पुरानी है, लेकिन भारत में इसका प्रयोग अभी तक बहुत सीमित रहा है।
25 सितंबर 2025 को दिल्ली सरकार और IIT कानपुर के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत पाँच बादल बीजन प्रयोग किए जाने हैं, जिनकी कुल लागत 3.21 करोड़ रुपये है। यह योजना मई 2025 में दिल्ली कैबिनेट ने मंजूर की थी। लेकिन बारिश के लिए सही मौसम का इंतजार करते-करते प्रयोग लगातार टाले गए — मई, जून, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक। अब तक एक भी प्रयोग नहीं हुआ।
अनुमतियाँ तो मिल गईं, लेकिन मौसम नहीं
दिल्ली के इस प्रयास के लिए 11 केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसियों ने अनुमति दी है — जिसमें पर्यावरण मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, आंतरिक मामलों का मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार और एयरपोर्ट्स ऑथॉरिटी ऑफ इंडिया शामिल हैं। DGCA ने 1 अक्टूबर से 30 नवंबर 2025 तक के बीच कोई भी दिन इस प्रयोग को करने की अनुमति दे दी है। लेकिन यह नहीं कि जब भी विमान उड़े, बारिश हो जाएगी।
बादल बीजन के लिए तीन चीजें जरूरी हैं: पर्याप्त बादल, उचित आर्द्रता, और वायुमंडलीय स्थिरता। अगर इनमें से कोई एक भी गायब है, तो बीज बर्बाद हो जाते हैं। IITM के पिछले CAIPEEX प्रोजेक्ट में सोलापुर में बारिश में केवल 18% वृद्धि हुई — और वहाँ भी बादल बहुत जल्दी विघटित हो गए। दिल्ली की हवा और बादल अधिक अस्थिर हैं।
वैज्ञानिकों की चिंता: यह सिर्फ एक रंगीन शो है?
डीपू फिलिप, IIT कानपुर के एक वैज्ञानिक, ने नेचर के लिए लिखा कि यह ‘दिल्ली के लिए एक वैज्ञानिक आशा की छलांग’ है। लेकिन उसी लेख में, अन्य वातावरण विशेषज्ञों ने इसे ‘एक भारी खतरा’ बताया। क्यों? क्योंकि बादल बीजन का असर केवल बारिश के रूप में नहीं, बल्कि वायुमंडलीय गतिशीलता में भी होता है। अगर बारिश नहीं होती, तो बीज के कण वायु में फैल जाते हैं — और वे खुद एक अतिरिक्त प्रदूषक बन जाते हैं।
23 अक्टूबर को एक ट्विटर यूजर, जिन्हें केवल ‘गुप्ता’ के नाम से जाना जाता है, ने लिखा: ‘अगर मौसम अच्छा रहा, तो 29 अक्टूबर को पहली कृत्रिम बारिश हो सकती है।’ यह एक उम्मीद है, लेकिन एक भरोसा नहीं।
अगला कदम? नवंबर तक का समय
अगर आज का प्रयोग नहीं हो पाया, तो अगला मौका 1 नवंबर के बाद आएगा। प्रयोग के लिए अभी भी दो सप्ताह हैं — लेकिन हर दिन दिल्ली का हवा खराब होता जा रहा है। अगर बारिश नहीं होगी, तो क्या यह प्रयोग बस एक दृश्य शो बन जाएगा — जहाँ टीवी पर विमान उड़ता है, लेकिन लोगों की सांसें उसी तरह फंसी रहती हैं?
पिछले प्रयास: क्या भारत में कभी काम किया?
1970 के दशक में IITM ने महाराष्ट्र और राजस्थान में हाइग्रोस्कोपिक बीजन का प्रयोग किया था। कुछ जगहों पर बारिश में 10-15% वृद्धि हुई, लेकिन यह आंकड़ा बहुत अस्थिर था। 2015 में तेलंगाना में एक बादल बीजन प्रोजेक्ट भी शुरू किया गया, लेकिन उसे 2019 में बंद कर दिया गया — असर नहीं दिखा। इसलिए दिल्ली के लिए यह एक नया प्रयोग है — और एक बहुत बड़ा जोखिम।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
बादल बीजन से दिल्ली की हवा साफ होगी?
बारिश अगर होती है, तो वायुमंडल से PM2.5 और PM10 के कण नीचे गिर जाते हैं। लेकिन यह केवल अस्थायी राहत है — जैसे एक बार धोया जाए तो गंदगी निकल जाए, लेकिन फिर वहीं से फिर से जमा होने लगे। वास्तविक समाधान वाहनों, इंजन और उद्योगों के उत्सर्जन को कम करना है।
क्यों इतनी देर से शुरू हुआ यह प्रयोग?
मौसम के अनुकूल न होने के कारण यह प्रयोग पाँच बार टाला गया। बारिश के मौसम के बाद बादलों की कमी, उच्च वायुमंडलीय दबाव और शुष्क हवाओं ने बीजन के लिए उपयुक्त स्थितियाँ नहीं बनाईं। इसलिए अब ऑक्टोबर के अंत तक इंतजार किया गया।
क्या यह प्रयोग सस्ता है?
3.21 करोड़ रुपये में पाँच प्रयोग करना सस्ता नहीं है। एक अकेले प्रयोग की लागत लगभग 64 लाख रुपये है — जो एक बड़े एयर प्यूरीफायर के बराबर है। लेकिन सरकार का तर्क है कि यह एक त्वरित उपाय है, जबकि लंबी अवधि के समाधान अभी तक नहीं लागू हुए।
क्या बादल बीजन से बारिश की मात्रा बढ़ जाएगी?
कोई भी वैज्ञानिक यह नहीं कह सकता कि बारिश बढ़ेगी। IITM के अध्ययन में सोलापुर में केवल 18% वृद्धि देखी गई — और वहाँ भी यह आंकड़ा एक औसत था। दिल्ली की हवा और बादलों की प्रकृति अधिक अनिश्चित है। इसलिए यह एक अनुमान है, न कि एक गारंटी।
अगर बारिश नहीं हुई, तो क्या होगा?
अगर बारिश नहीं होगी, तो सरकार अगले दो सप्ताह में और दो बार प्रयास करेगी। लेकिन अगर तीनों प्रयोग असफल रहे, तो इस योजना को निलंबित कर दिया जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह के प्रयोगों के लिए लंबे समय तक निगरानी और डेटा जुटाना जरूरी है — जो अभी तक नहीं हुआ।
क्या बादल बीजन से पानी की कमी दूर होगी?
नहीं। यह केवल वायु प्रदूषण के लिए डिज़ाइन किया गया है, न कि जल संकट के लिए। दिल्ली के जल स्तर लगातार गिर रहे हैं — और बारिश के एक दिन के असर से यह नहीं बदलेगा। वास्तविक समाधान जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और बारिश के पानी को संग्रहित करना है।
simran grewal
अक्तूबर 29, 2025 AT 00:36अरे भाई, बादल बीजन करवा रहे हो? अगर ये काम करता तो तेलंगाना वाले इसे 2019 में बंद नहीं करते। अब टीवी पर विमान उड़ाकर लोगों को शांत कर रहे हो? ये तो बस एक ड्रोन शो है।