दिल्ली में तापमान 36°C तक छू गया, AQI 120 के साथ हवा में बढ़ी चिंताएँ

जब दिल्ली ने 30 सितंबर 2025 को मॉनसन के चले जाने के बाद अपना थर्मामीटर 36°C से ऊपर दिखाया, तो शहर के नागरिकों को गर्मी के साथ‑साथ हवा की गुणवत्ता के बारे में गहरी चिंता महसूस हुई। उसी दिन दोपहर 4 बजे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 120 दर्ज किया, जो ‘मध्यम’ श्रेणी में आता है। इस रिपोर्ट ने यह भी बताया कि तापमान 35‑37°C के बीच चल रहा था और न्यूनतम तापमान 26‑28°C था – दोनों ही सामान्य से कुछ डिग्री अधिक। वायु गुणवत्ता की इस नई स्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए: क्या आगामी स्टब्बल जलाने का मौसम इसे और ख़राब कर देगा?
मॉनसन के बाद दिल्ली में तापमान की तेज़ी
मॉनसन के आखिरी दो हफ़्तों में दिल्ली ने धीरे‑धीरे मौसम को ठंडा करने वाले बादलों को खो दिया। 29 सितंबर को आकाश परत‑दर‑परत बादलों से ढका था, पर असामान्य रूप से दक्षिण‑पूर्वी दिशा से 14 किमी/घंटा तक की हल्की हवा चल रही थी। अगले दिन मौसम विभाग ने बताया कि समुद्री हवाओं के कारण तापमान में थोड़ी गिरावट की उम्मीद है, पर फिर भी अधिकतम 34‑36°C की रेंज बनी रहेगी। हल्की‑भारी बारिश के साथ तूफ़ानी बादल, चमकते बिजली के झटके और 30‑40 किमी/घंटा की हवाएं, कभी‑कभी 50 किमी/घंटा तक के गुस्ते के साथ, इस व्याख्यान में प्रमुख बनेंगे।
वायु गुणवत्ता पर नवीन आँकड़े
वायु की स्थिति को समझने के लिए वायु गुणवत्ता प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली ने 30 सितंबर को 120 का AQI बताया, जो ‘मध्यम’ श्रेणी में आता है। यह आंकड़ा पिछले दिनों के 101‑200 के लेवल से थोड़ा घटा‑बढ़ा है, पर अभी भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए सतर्कता की सीमा के भीतर है। वही प्रणाली ने इसे ‘मध्यम’ से ‘खराब’ में बदलने के संकेत भी दर्ज किए, क्योंकि अगले हफ्ते के अंत तक धुंआ जलाने की गतिविधियों में तीव्रता आ सकती है।
पिछले वर्षों से प्रवृत्ति
डेटा से पता चलता है कि 2021 में सितंबर तक AQI औसत 76 था, जब अधिकांश दिन ‘संतोषजनक’ (Satisfactory) रहे। 2023 में यह औसत 97 तक बढ़ा, और ‘मध्यम’ (Moderate) दिनों की संख्या 12 हो गई। 2024 में औसत 96 के साथ ‘मध्यम’ श्रेणी में एक‑तीहाई दिन दर्ज हुए। 2025 में अब तक की औसत 97 है, जो ‘संतोषजनक’ और ‘मध्यम’ के बीच बराबर बाँटी हुई है।
नवम्बर‑दिसम्बर 2025 के मौसम में, जब धुंआ जलाने की तीव्रता चरम पर होगी, तो AQI 200‑300 के ‘खराब’ (Poor) या उससे भी ऊपर ‘गंभीर’ (Severe) स्तर तक पहुँच सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि धुंआ में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे गैसें 92% तक की मात्रा में मिलती हैं। सिर्फ एक टन धुंआ जलाने से 1.4 टन से अधिक CO2 और अन्य हानिकारक गैसें निकलती हैं, जिनमें चावल के धुंए का हिस्सा 40% तक हो सकता है।
धुंआ जलाने और प्रदूषण के मुख्य कारण
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (2022) के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में AQI अक्टूबर‑फरवरी के ठंडे महीनों में 200‑से अधिक रहता है, क्योंकि ठंड के साथ इनडोर हीटिंग, पावर प्लांट्स और सड़क धूल भी मिलकर हवा को गंदा कर देते हैं।
जहाँ तक स्टब्बल जलाने की बात है, किसानों की ऋण समस्या और फसल के बिच में जल की कमी इसे एक आसान समाधान बना देती है। हर साल उत्तर प्रदेश और हरियाणा के खेतों में सैकड़ों हजार टन धुंआ जलाया जाता है, जिससे दिल्ली की रातें धुंधली और धुंआ भरी हो जाती हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय मिशन ‘स्मार्ट फायर‑फ्री’ की योजना जारी है, पर अब तक इसका प्रभाव सीमित दिख रहा है।
आगे क्या उम्मीद है?
विकास विशेषज्ञ अजय मिश्रा, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में प्रधान वैज्ञानिक हैं, ने कहा, “अगले दो‑तीन हफ्तों में धुंआ जलाने की तीव्रता में 30‑40% वृद्धि देखी जा रही है। यदि मौसम के साथ-साथ शहरी उत्सर्जन भी कम न हुआ, तो AQI 150‑180 के ‘मध्यम‑खराब’ स्तर तक पहुँचा सकता है।”
जैसे‑जैसे अक्टूबर करीब आता है, नगर निगमों ने मापदंडों को कड़ा करने, पातेरी वायु शुद्धिकरण इकाइयों को लगाना और सार्वजनिक जागरूकता अभियानों को तेज़ करने का इरादा जताया है। फिर भी, दीर्घकालिक समाधान के लिए कृषि नीतियों में बदलाव, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की वृद्धि और व्यक्तिगत स्तर पर कारपूलिंग जैसी हरकतें ज़रूरी हैं। इस प्रकार, 2025 का मौजूदा डेटा हमें एक चेतावनी देता है: यदि हम अभी कार्रवाई नहीं करते, तो अगले सर्दियों में दिल्ली के नागरिक ‘हजारीबाग’ से ‘हेल्थ‑हैवॉक’ तक की हवाई यात्रा को भी सास तक पहुँच नहीं पाएँगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
दिल्ली में तापमान बढ़ने से AQI पर क्या असर पड़ता है?
उच्च तापमान वायुमंडलीय स्थिरता को बढ़ाता है, जिससे प्रदूषकों का प्रसार घटता है और वे सतह के पास जमते हैं। इस कारण AQI मूल्य बढ़ता है, जैसा कि 30 सितंबर को 120 रहा।
स्टब्बल जलाने से कितना CO2 निकलता है?
एक टन धुंआ जलाने से लगभग 1.4 टन कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें निकलती हैं। चावल के धुंए में यह हिस्सा लगभग 40% तक हो सकता है, जो क्वालिटी को तेज़ी से घटाता है।
क्या अक्टूबर‑फरवरी में हवा का स्तर सुधर सकता है?
संभव है, पर इसके लिए धुंआ जलाने पर सख्त प्रतिबंध, वाहन उत्सर्जन पर कड़ी पकड़ और सर्दियों में हीटिंग स्रोतों का स्वच्छ विकल्प अपनाना जरूरी है। नहीं तो AQI 200‑से ऊपर गिर सकता है।
सिटी प्लानर्स कौन से कदम उठा रहे हैं?
नागरिक निगम ने मोबाइल एअर मॉनिटरिंग यूनिट्स, हरित क्षेत्रों का विस्तार और सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। साथ ही, धुंआ जलाने वाले क्षेत्रों में निगरानी व डिटर्जेंट के प्रयोग पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है।
सामान्य जनता को इस समय क्या करना चाहिए?
बेहतर हवा के लिए घर में वायु शुद्धिकरण उपकरण का उपयोग, खुले में धुएँ से बचना, साईकल या पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करना और स्थानीय स्तर पर धुंआ जलाने के विरोध में आवाज़ उठाना प्रभावी कदम हैं।
Govind Kumar
सितंबर 30, 2025 AT 23:10दिल्ली में इस तापमान और AQI के साथ नागरिकों को सच में असहज महसूस हो रहा है। जैसे ही तापमान 36°C तक पहुँचता है, हवा में धूल और प्रदूषक स्थिर हो जाते हैं। इससे श्वसन संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में घर के अंदर एयर प्यूरीफ़ायर का उपयोग फायदेमंद रहेगा। साथ ही, सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करके व्यक्तिगत कारों की संख्या घटाना आवश्यक है।
Rashi Nirmaan
अक्तूबर 2, 2025 AT 03:13हमारी सरकार को इस प्रदूषण को रोकने में कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
Trupti Jain
अक्तूबर 3, 2025 AT 07:16दिल्ली का मौसम अब एक दुष्कर परीक्षण बन गया है; गर्मी की मार और वायु में गैसों की भरमार ने शहर को निबंध जैसी स्थिति में डाल दिया है। इस महीने के डेटा से स्पष्ट है कि AQI पहले से ही ‘मध्यम’ स्तर पर पहुँच चुका है, जो एक चेतावनी संकेत है। अगर धुंआ जलाने की प्रथा को नहीं रोका गया तो यह स्तर ‘खराब’ तक भी बढ़ सकता है। किसान अपने फसल के नुकसान को कम करने के लिये इस पर भरोसा करते हैं, पर उनका यह कदम हमारे शहरी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। दिल्ली की सड़कों पर धुंध की परत छा जाने से आँखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ़ बढ़ जाती है। इस मुद्दे को लेकर नगर निगम ने कुछ कदम उठाए हैं, पर उनका प्रभाव अभी तक सीमित दिख रहा है। हमें चाहिए कि हम व्यक्तिगत स्तर पर भी अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करें, जैसे साइकिल चलाना या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग। अंततः, सामुदायिक जागरूकता और नीति परिवर्तन ही इस खतरनाक स्थिति को सुधार सकते हैं।
deepika balodi
अक्तूबर 4, 2025 AT 11:20स्टब्बल जलाने से उत्सर्जन में वृद्धि होती है, जिससे AQI के मान और बढ़ते हैं। इसलिए इस प्रथा को वैकल्पिक तरीकों से बदलना जरूरी है।
Priya Patil
अक्तूबर 5, 2025 AT 15:23कुल मिलाकर देखा जाए तो हमें इस गर्मी के मौसम में श्वास की सुरक्षा के लिए कुछ ठोस उपाय अपनाने चाहिए। पहला, घर में HEPA फिल्टर वाले एयर प्यूरीफ़ायर लगाएँ। दूसरा, शाम के समय बाहर निकलते समय मास्क पहनें। तीसरा, स्थानीय स्तर पर धुंआ जलाने के विरोध में आवाज़ उठाएँ। साथ ही, बच्चों को भी इस बात की जानकारी दें कि प्रदूषण के दुष्परिणाम क्या होते हैं। इन छोटे-छोटे कदमों से हम बड़ी बदलाव की आशा रख सकते हैं।
Rashi Jaiswal
अक्तूबर 6, 2025 AT 19:26बिल्कुल सही कहा तुमने, छोटे-छोटे कदमों से ही बड़ा फर्क पड़ता है! चलो, हम सब मिलकर इस धुंए को हटाने की कोशिश करें, क्यूंकि मैं तो हमेशा उम्मीद रखती हूँ कि एक दिन हवा साफ़ हो जाएगी।
vikash kumar
अक्तूबर 7, 2025 AT 23:30वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट है कि औसत तापमान तथा AQI मान दोनों में नाटकीय वृद्धि हुई है। यह वृद्धि न केवल शहरी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, बल्कि दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों को भी उत्पन्न करती है। अतः, नीति निर्धारण में वैज्ञानिक डेटा का उचित प्रयोग अनिवार्य हो जाता है। शहर के नियोजकों को चाहिए कि वे इन आँकड़ों को गंभीरता से लेते हुए प्रभावी शमन उपाय प्रस्तावित करें।
Anurag Narayan Rai
अक्तूबर 9, 2025 AT 03:33दिल्ली के मौसमी परिवर्तन और प्रदूषण स्तर का गहन अध्ययन आने वाले हफ्तों में अत्यंत आवश्यक हो गया है।
जब तापमान 36°C तक पहुंच जाता है, तो वायुमंडल की स्थिरता बढ़ जाती है, जिससे हानिकारक कण सतह के पास रह जाते हैं।
परिणामस्वरूप, श्वसन रोगों की शिकायतें उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही हैं, विशेषकर बुजुर्ग और बच्चों में।
स्मार्ट फायर‑फ्री जैसी योजनाएँ laudable हैं, परन्तु उनका वास्तविक प्रभाव अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।
किसानों द्वारा धुंआ जलाना मुख्यतः आर्थिक दबाव और जल की कमी के कारण होता है, जिससे यह सामाजिक समस्या बन चुकी है।
यह धुंआ न केवल Delhi के AQI को बढ़ाता है, बल्कि पड़ोसी राज्यों की हवा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि इस महीने का औसत AQI 120 रहा, जो मध्यम श्रेणी में है, परंतु संभावित जोखिम अभी भी उच्च है।
यदि अगस्त‑सितंबर के अंत में धुंआ जलाने की दर 30‑40% बढ़ती है, तो AQI 150‑180 तक पहुंच सकता है, जैसा कि विशेषज्ञों ने पूर्वानुमान किया है।
स्थानीय अधिकारियों को चाहिए कि वे धुंआ जलाने के खिलाफ सख्त प्रतिबंध लागू करें और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें।
साथ ही, सार्वजनिक परिवहन को अधिक किफ़ायती और विश्वसनीय बनाकर निजी वाहनों के उपयोग को न्यूनतम किया जा सकता है।
शहरी हरियाली का विस्तार, जैसे वृक्षारोपण अभियान, भी हवा को प्राकृतिक फ़िल्टर प्रदान कर सकते हैं।
रोगी सलाहकारों ने सलाह दी है कि उच्च AQI वाले दिनों में घर के भीतर एअर प्यूरीफ़ायर चलाया जाए।
व्यक्तिगत स्तर पर, लोग मास्क पहनकर और घर के अंदर धूप से बचकर अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं।
ऐसी सामुदायिक पहलें, जैसे पड़ोस में धुंआ मुक्त क्षेत्रों की निगरानी, दीर्घकालिक सुधार में सहायक सिद्ध होंगी।
अतः, सामूहिक प्रयास और नीति परिवर्तन के बिना, दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार की आशा सीमित रह जाएगी।
Swetha Brungi
अक्तूबर 10, 2025 AT 07:36प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए यह समझना जरूरी है कि पर्यावरणीय संतुलन का संरक्षण केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि व्यक्तिगत जागरूकता भी मांगता है। हमें चाहिए कि हम रोज़मर्रा की छोटी-छोटी आदतों में बदलाव लाएँ, जैसे कारपूलिंग या साइकिल चलाना। साथ ही, स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर धुंआ जलाने के विरोध में प्रदर्शन आयोजित करना प्रभावी साबित हो सकता है। इस तरह की सामूहिक कार्रवाई न केवल हवा को साफ़ करेगी, बल्कि सामाजिक एकता को भी मजबूत करेगी। अंत में, यह याद रखना चाहिए कि हर छोटा कदम बड़े बदलाव की नींव रखता है।
Shubham Abhang
अक्तूबर 11, 2025 AT 11:40AQI 120, यह संख्या, मध्य स्तर, दर्शाती है; परन्तु, क्या यह पर्याप्त है, यह सवाल अभी भी बना हुआ है।
प्रदूषण की यह बढ़ोतरी, हमारे दैनिक जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है, इसलिए, हमें तुरंत कार्य करने की आवश्यकता है।
यदि इस पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो भविष्य में वायु गुणवत्ता और भी बिगड़ सकती है।
Vibhor Jain
अक्तूबर 12, 2025 AT 15:43दिल्ली की गर्मी और धुंआ दोनों ही असहज हैं, लेकिन यह समझना आसान नहीं कि कौन ज्यादा असर डाल रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि मोसम का असर है, तो कुछ कहते हैं कि धुंआ का। व्यक्तिगत तौर पर, मैं दोनों कारणों को बराबर मानता हूँ, पर कुछ हद तक यह उल्लेखनीय है कि इन दोनों का संयुक्त प्रभाव क्या होता है। अंत में, लोगों को चाहिए कि वे अपनी दैनिक आदतों में बदलाव लाकर इस समस्या को कम करने की कोशिश करें।
Ashutosh Kumar Gupta
अक्तूबर 13, 2025 AT 19:46वस्तु यह है कि बिना ठोस कार्यों के केवल शब्दों से बदलाव नहीं आएगा। सरकार और नागरिक दोनों को मिलकर ही इस धुंए को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए।