Infosys Buyback: 13,000 करोड़ का बायबैक, बाजार में जोश और आगे की रणनीति

Infosys Buyback: 13,000 करोड़ का बायबैक, बाजार में जोश और आगे की रणनीति सित॰, 10 2025

इन्फोसिस का 13,000 करोड़ का बायबैक: बाजार में रौनक, निवेशकों के लिए संकेत क्या हैं

दो दिन में 7% की तेजी—यही है बाजार की पहली प्रतिक्रिया इन्फोसिस के संभावित 13,000 करोड़ रुपये के शेयर बायबैक पर। शेयर BSE पर 1,489.50 रुपये तक पहुंचा और सेंटीमेंट साफ दिखा: बड़े कैश रिटर्न का मतलब मैनेजमेंट का आत्मविश्वास। बोर्ड 11 सितंबर 2025 को इस प्रस्ताव पर चर्चा करेगा, और यहीं से तय होगा कि तरीका क्या होगा, प्राइसिंग कैसी होगी और टाइमलाइन कितनी लंबी होगी।

प्रस्ताव के मुताबिक बायबैक पूरी तरह से चुकता इक्विटी शेयरों में होगा, जिनका फेस वैल्यू 5 रुपये है। आकार बड़ा है—13,000 करोड़—लेकिन कंपनी की_market cap_ के मुकाबले यह हिस्सेदारी सीमित रहेगी, इसलिए इसे “समर्थनकारी” कदम माना जा रहा है, न कि ट्रेंड पलटने वाला। इस तरह की चालें आमतौर पर दो काम करती हैं: शेयरों की सप्लाई घटाती हैं और प्रति शेयर आय (EPS) को धीरे-धीरे ऊपर खिसकाती हैं।

इतिहास भी हौसला देता है। बायबैक की घोषणाओं के बाद इन्फोसिस के शेयर पहले भी तीन में से चार बार चढ़े हैं। 2022 में कंपनी ने ओपन मार्केट के जरिए 9,300 करोड़ रुपये का बायबैक किया था, अधिकतम कीमत 1,850 रुपये प्रति शेयर रखी गई थी और करीब 5.03 करोड़ शेयर खरीदे गए थे। तब मैसेज स्पष्ट था: मजबूत बैलेंस शीट, कैश जेनरेशन और शेयरहोल्डर रिटर्न की सुसंगत नीति।

अब बड़ा सवाल—इस बार रास्ता कौन सा होगा? इन्फोसिस ने पहले ओपन मार्केट रूट अपनाया था। लेकिन SEBI ने 2022 में स्टॉक-एक्सचेंज रूट को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की रूपरेखा जारी की थी, जो 2025 तक लागू होने की दिशा में थी। अगर यह व्यवस्था पूरी तरह प्रभावी है, तो कंपनी टेंडर रूट चुन सकती है; अगर नहीं, तो सीमित समय-सीमा में ओपन मार्केट भी विकल्प रह सकता है। तय तस्वीर बोर्ड मीटिंग के बाद ही साफ होगी।

तरीका, प्रीमियम और निवेशकों के कदम: क्या जानना जरूरी है

ओपन मार्केट और टेंडर रूट में फर्क समझना जरूरी है। ओपन मार्केट में कंपनी धीरे-धीरे एक्सचेंज पर शेयर खरीदती है—न कोई रिकॉर्ड डेट, न कोई तय स्वीकार्यता अनुपात। टेंडर रूट में कंपनी एक तय कीमत (अक्सर मौजूदा भाव पर प्रीमियम) पर शेयर वापस खरीदती है, रिकॉर्ड डेट होती है और हर श्रेणी के निवेशकों के लिए एंटाइटलमेंट तय किया जाता है। छोटे निवेशकों को आमतौर पर अलग कोटा मिलता है, जिससे उनकी स्वीकार्यता दर बेहतर हो सकती है।

प्रीमियम की उम्मीदें? पिछली बड़ी कंपनियों के टेंडर बायबैक में 10–20% प्रीमियम का उदाहरण दिखता है, पर यह हर बार नहीं होता और कंपनी की नकदी, वैल्यूएशन और बाजार की हालत पर निर्भर करता है। 2022 में इन्फोसिस का ओपन मार्केट बायबैक था, इसलिए वहां अधिकतम कीमत बताई गई थी, निश्चित प्रीमियम नहीं। इस बार बोर्ड मीटिंग के बाद पता चलेगा कि अधिकतम कीमत क्या है या टेंडर रूट चुना गया तो ऑफर प्राइस कितना रखा गया।

नियामकीय ढांचे की बात करें तो बायबैक कुल पेड-अप कैपिटल और फ्री रिजर्व के एक हिस्से तक सीमित हो सकता है, और पोस्ट-बायबैक ऋण-से-इक्विटी अनुपात पर भी सीमाएं लागू रहती हैं। कंपनी को लेटर ऑफ ऑफर, टेंडर फॉर्म्स और समयसीमा सहित विस्तृत खुलासे जारी करने होते हैं। ओपन मार्केट में कंपनी को एक तय अवधि के भीतर बायबैक पूरा करना पड़ता है, जबकि टेंडर में ऑफर विंडो कुछ दिनों के लिए खुलती है और सेटलमेंट तय समय में होता है।

शेयर पर असर क्या हो सकता है? अल्पकाल में कीमत को समर्थन मिलता दिख सकता है—ठीक वैसा ही जैसा पिछले दो दिनों में देखने को मिला। मध्यम अवधि में तस्वीर अलग है: ऑर्डर बुक की रफ्तार, बड़े डील्स का रैंप-अप, अमेरिकी और यूरोपीय क्लाइंट्स की डिस्क्रेशनरी IT स्पेंडिंग, BFSI की हेल्थ और मुद्रा उतार-चढ़ाव जैसे फैक्टर असली ड्राइवर रहेंगे। बायबैक इन जोखिमों को खत्म नहीं करता, बस कैश के बेहतर उपयोग का संदेश देता है।

निवेशक क्या करें? सबसे पहले, तरीका साफ होने का इंतजार करें। टेंडर रूट हुआ तो रिकॉर्ड डेट के दिन आपके डिमैट में शेयर होने चाहिए। ओपन मार्केट हुआ तो कोई रिकॉर्ड डेट नहीं; कंपनी समय-समय पर बाजार से खरीदती है और आपको अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं।

  • बोर्ड मीटिंग में किन बातों पर फैसला होगा: तरीका (ओपन मार्केट या टेंडर), अधिकतम/ऑफर प्राइस, बायबैक का आकार और अवधि, रिकॉर्ड डेट (अगर टेंडर रूट), और सेटलमेंट शेड्यूल।
  • प्रीमियम और वैल्यूएशन: ऑफर प्राइस मौजूदा बाजार भाव से कितना ऊपर है, और कंपनी का P/E, डील पाइपलाइन और मार्जिन आउटलुक उसे जस्टिफाई करते हैं या नहीं।
  • स्वीकार्यता की संभावना (केवल टेंडर): रिटेल कोटा कितना है और ऐतिहासिक स्वीकार्यता दरें कैसी रही हैं।
  • EPS/ROE पर असर: जारी शेयरों की संख्या घटेगी तो प्रति शेयर मीट्रिक्स बेहतर दिख सकते हैं—यह लंबी अवधि के निवेशकों के लिए पॉजिटिव होता है।

टेक्निकल्स की नजर से देखें तो शेयर हाल के महीनों में निचले दायरे में कंसोलिडेट कर रहा था। ऐसे समय में बायबैक का संकेत आमतौर पर शॉर्ट-टर्म सपोर्ट देता है। लेकिन तेजी टिकाऊ होगी या नहीं, यह कंपनी की अगली तिमाही की कमेंट्री, प्राइसिंग डिसिप्लिन, उपठेका लागत और डील क्लोजर रेट पर निर्भर करेगा।

पिछले बायबैक का अनुभव भी काम का है। 2017 और 2019 में इन्फोसिस ने टेंडर रूट अपनाया था, जबकि 2022 में ओपन मार्केट चुना गया। उस समय अधिकतम कीमत सीमित रखकर कंपनी ने चरणबद्ध खरीदारी की, जिससे बाजार पर अचानक दबाव नहीं बना। निवेशकों को भी आराम मिला कि कंपनी ऊंचे स्पाइक्स पर नहीं, बल्कि अपने बताए दायरे में ही खरीदी करेगी।

कर संबंधी कोण छोटा पर अहम है। बायबैक के जरिए कंपनी टैक्स ढांचे के तहत भुगतान करती है और निवेशक के हाथ में आम तौर पर पूंजीगत लाभ से अलग व्यवहार हो सकता है—टेंडर रूट में शेयर बेचने वालों के लिए पूंजीगत लाभ के नियम लागू होते हैं। इस हिस्से में आपकी टैक्स स्थिति, होल्डिंग पीरियड और स्लैब मायने रखते हैं, इसलिए व्यक्तिगत सलाह लेना समझदारी है।

लार्ज-कैप IT में बायबैक एक तरह का “सिग्नल” भी है—कहता है कि फ्री कैश फ्लो मजबूत है और मैनेजमेंट मौजूदा वैल्यूएशन पर अपने शेयरों को आकर्षक मानता है। 13,000 करोड़ का आकार इसी भरोसे की ओर इशारा करता है। हां, यह भी सच है कि बायबैक ग्रोथ का विकल्प नहीं—क्लाइंट टेक बजट, क्लाउड माइग्रेशन की रफ्तार और जेनरेटिव AI-संबंधी डील्स की मोनेटाइजेशन ही आखिरी फैसला करेंगे कि रैली कितनी आगे जाती है।

आगे क्या देखें? 11 सितंबर की बोर्ड बैठक के बाद डिटेल्ड शर्तें आएंगी—तरीका, प्राइस, समयसीमा और अगर टेंडर रूट चुना गया तो रिकॉर्ड डेट। उसके बाद लेटर ऑफ ऑफर और प्रक्रिया का कैलेंडर जारी होगा। यह भी देखा जाएगा कि कंपनी शेयरधारकों के लिए अलग कैटेगरी (रिटेल/जनरल) में क्या एंटाइटलमेंट फॉर्मूला रखती है।

एक आखिरी बात—अगर आप शॉर्ट-टर्म मुनाफे के लिए प्री-इवेंट दौड़ लगाना चाहते हैं, तो लिक्विडिटी, स्लिपेज और संभावित वोलैटिलिटी को ध्यान में रखें। बायबैक अक्सर उम्मीदों के साथ चलता है; हकीकत कभी-कभी अलग निकलती है। लंबी अवधि के निवेशक के लिए Infosys Buyback शेयर गिनती घटाकर क्वालिटी नाम में हिस्सेदारी बढ़ाने जैसा हो सकता है, बशर्ते बिजनेस फंडामेंटल्स अपनी जगह मजबूत रहें।