मलयालम फिल्म की दिग्गज अभिनेत्री कवीयूर पोनम्मा का 79 वर्ष की आयु में निधन

मलयालम फिल्म की दिग्गज अभिनेत्री कवीयूर पोनम्मा का 79 वर्ष की आयु में निधन सित॰, 21 2024

मलयालम सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री कवीयूर पोनम्मा का निधन

मलयालम सिनेमा की जगमगाती हस्ती कवीयूर पोनम्मा अब हमारे बीच नहीं रहीं। 79 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। यह खबर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा धक्का है, क्योंकि कवीयूर पोनम्मा का नाम सिनेमा की सुनहरी यादों से जुड़ा हुआ था। लंबे समय से वे गंभीर शारीरिक बीमारियों का सामना कर रही थीं और उनकी स्थिति नाजुक थी। उनका इलाज चल रहा था, परन्तु वे अपना संघर्ष हार गईं।

कवीयूर पोनम्मा ने अभिनय से ब्रेक ले लिया था और करीमल्लूर, उत्तर पारवूर स्थित अपने निवास पर अधिकतर समय बिता रही थीं। उनका जीवन और उनकी यादें मलयालम सिनेमा के परिप्रेक्ष्य में अनमोल मोती की तरह हैं। उनकी मौत के बाद, मलयालम सिनेमा जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।

मलयालम फिल्म उद्योग में महत्वपूर्ण योगदान

कवीयूर पोनम्मा ने अपने करियर की शुरुआत बहुत ही छोटी उम्र में की थी और जल्दी ही उन्होंने सिनेमा की दुनिया में अपनी पहचान बना ली थी। उनके अभिनय की गहराई और उनकी भावनात्मक प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली थी। उन्होंने कई प्रतिष्ठित फिल्मों में काम किया और कई अवार्ड्स भी जीते। उनके अभिनय से सजी फिल्मों ने मलयालम सिनेमा को नए आयाम दिए।

उनकी सबसे लोकप्रिय और यादगार फिल्मों में से कुछ के नाम हैं - 'नोवेम्बर रेन', 'कुदुम्बसमेठम', 'वात्सल्यम', और 'मास्टरपिस'। इन फिल्मों में उनकी भूमिकाओं ने लोगों को गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने अपने किरदारों में जीवंतता भर दी।

कवीयूर पोनम्मा का जीवन और संघर्ष

कवीयूर पोनम्मा का जन्म 1944 में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया। उनके संघर्षमय जीवन की कहानी ने कई लोगों को प्रेरणा दी। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत रंगमंच से की थी और धीरे-धीरे फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा।

उनके परिवार और करीबी मित्रों ने कहा कि वे एक बहुत ही सरल, स्नेही और संवेदनशील व्यक्ति थीं। वे हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थीं और अपने आसपास के लोगों को अक्सर प्रेरित करती थीं।

अभिनय में योगदान और उपलब्धियां

कवीयूर पोनम्मा ने अपने दशक भर के करियर में 500 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी अभिनय शैली ने हमारे दिलों को छुआ और उनकी विभिन्न भूमिकाओं ने साबित कर दिया कि वे प्रतिभा की खान थीं। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिसमें 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार', 'केरल राज्य फिल्म पुरस्कार', और कई अन्य सम्मानों का समावेश है।

उनके अभिनय के जरिए उन्होंने समाज को विभिन्न संदेश दिए और सामाजिक मुद्दों पर भी जोर दिया। उनकी कई फिल्में समाजिक चेतना को जागृत करने में सफल रहीं।

स्मृति और श्रद्धांजलि

स्मृति और श्रद्धांजलि

कवीयूर पोनम्मा का निधन एक बड़ी क्षति है, जिसे भरना मुश्किल है। सिनेमा प्रेमी और उनके प्रशंसक हमेशा उन्हें अपनी यादों में संजोए रहेंगे। उनके द्वारा निभाए गए किरदारों और फिल्मों की गहराई से दर्शकों की सोच में भी बदलाव आया।

उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर भी तमाम प्रशंसा और श्रद्धांजलि भरे संदेश आए हैं। फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े नाम उनके योगदान की तारीफ कर रहे हैं और उनकी देखभाल और संघर्ष की कहानी को याद कर रहे हैं।

कवीयूर पोनम्मा का योगदान और उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी। वे हमारी स्मृतियों में जीवंत रहेंगी और उनका नाम हमेशा सिनेमा की दुनिया में सुनहरे अक्षरों में लिखा रहेगा।

16 टिप्पणि

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    Ritu Patel

    सितंबर 23, 2024 AT 01:06
    कवीयूर पोनम्मा ने तो बस अभिनय नहीं किया, वो तो जीवन को कैमरे के सामने उतार दिया। हर फिल्म में उनकी आँखों में एक पूरी दुनिया छिपी थी।
    कभी दर्द, कभी शांति, कभी गुस्सा... वो सब कुछ बिना एक शब्द के बोल देती थीं।
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    Deepak Singh

    सितंबर 23, 2024 AT 22:46
    मलयालम सिनेमा के इतिहास में, कवीयूर पोनम्मा का स्थान, अभिनय के आधुनिक युग की शुरुआत के रूप में है। उनके अभिनय का तरीका, भावनात्मक गहराई, और शारीरिक भाषा का संयोजन, एक ऐसा मानक है, जिसे आज तक कोई नहीं दोहरा पाया है।
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    Rajesh Sahu

    सितंबर 24, 2024 AT 12:52
    हमारे देश में अभिनय का सच्चा अर्थ केवल दक्षिण भारत में ही समझा जाता है! बॉलीवुड में तो सिर्फ नाम के लिए अभिनय होता है। कवीयूर पोनम्मा ने तो अभिनय को एक कला बना दिया!
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    Chandu p

    सितंबर 26, 2024 AT 02:25
    मैं बचपन में उनकी फिल्म 'नोवेम्बर रेन' देखकर रो पड़ा था। आज भी जब भी वो दृश्य याद आता है, आँखें भर आती हैं। 😢
    उन्होंने हमें सिखाया कि अभिनय में आँखें बोलती हैं, न कि मुँह।
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    Gopal Mishra

    सितंबर 26, 2024 AT 22:07
    कवीयूर पोनम्मा के अभिनय की विशेषता यह थी कि वे हर किरदार को जीवंत कर देती थीं, बिना किसी अतिशयोक्ति के। उनकी शैली में एक अद्वितीय सादगी थी, जिसके कारण दर्शक उनके किरदार के साथ अपनी अपनी कहानी जोड़ लेते थे। यही उनकी विशेषता थी।
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    Swami Saishiva

    सितंबर 27, 2024 AT 10:46
    अब तक किसी ने इतना अच्छा अभिनय नहीं किया। बाकी सब तो नाटक कर रहे हैं।
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    Swati Puri

    सितंबर 29, 2024 AT 03:39
    उनके अभिनय में अवधारणात्मक गहराई थी-एक निर्माणात्मक नारीवादी अभिव्यक्ति जो अनुभव के स्तर पर काम करती थी। उनकी भूमिकाएँ एक व्यक्तिगत और सामाजिक संघर्ष के साथ अतिव्याप्त होती थीं।
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    megha u

    सितंबर 29, 2024 AT 09:43
    ये सब बकवास है... असल में फिल्में बनाने वाले ने उनका इस्तेमाल किया और फिर उन्हें भूल गए। अब जब नहीं रहीं, तो श्रद्धांजलि। 😒
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    pranya arora

    सितंबर 30, 2024 AT 23:34
    उनकी मौत ने सिर्फ एक अभिनेत्री को नहीं ले लिया... एक ऐसी आवाज़ को ले लिया जो बिना शब्दों के भी बात कर सकती थी। आज की दुनिया में ऐसी आवाज़ बहुत कम है।
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    Arya k rajan

    अक्तूबर 1, 2024 AT 00:14
    मैंने उनकी फिल्में देखीं थीं जब मैं बच्चा था... आज भी उनके चेहरे के भाव याद हैं। वो कोई अभिनेत्री नहीं थीं, वो तो एक अनुभव थीं।
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    Sree A

    अक्तूबर 2, 2024 AT 04:32
    500+ फिल्में, राष्ट्रीय पुरस्कार, केरल राज्य पुरस्कार-इन सबके बावजूद, उनका अभिनय बाजार के बाहर था। वो निर्माताओं के लिए नहीं, दर्शकों के लिए अभिनय करती थीं।
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    DEVANSH PRATAP SINGH

    अक्तूबर 3, 2024 AT 01:06
    मैं भी उनकी फिल्में देखता था। 'कुदुम्बसमेठम' तो मेरे घर में हर साल देखा जाता था। उनकी हंसी और आँखों में आँखें भर आ जाती थीं।
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    SUNIL PATEL

    अक्तूबर 3, 2024 AT 10:36
    अभिनय के लिए नाम बनाना नहीं, अपने काम को अच्छा करना चाहिए। उन्होंने यही किया। बाकी सब बस शोर मचा रहे हैं।
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    Avdhoot Penkar

    अक्तूबर 3, 2024 AT 14:17
    लेकिन बताओ, उन्होंने कभी हिंदी फिल्मों में काम किया? नहीं? तो ये सब अतिशयोक्ति है। 😂
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    Gopal Mishra

    अक्तूबर 3, 2024 AT 19:09
    यह सवाल बिल्कुल गलत दिशा में जा रहा है। कवीयूर पोनम्मा की अद्वितीयता उनके क्षेत्रीय संस्कृति के साथ जुड़ी थी, जिसमें भाषा का अर्थ अलग होता है। हिंदी फिल्मों में काम करना उनकी कला की गुणवत्ता को नहीं बढ़ाता।
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    Raveena Elizabeth Ravindran

    अक्तूबर 3, 2024 AT 21:07
    वो तो बस एक बूढ़ी औरत थी जिसकी फिल्में अब बोरिंग हैं। आजकल के युवा इन्हें नहीं देखते।

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