वायु गुणवत्ता
जब हम वायु गुणवत्ता, वायुमंडल में मौजूद प्रदूषकों की मात्रा और उनकी स्वास्थ्य पर पड़ने वाली प्रभावशीलता की बात करते हैं, तो दो चीज़ें तुरंत दिमाग में आती हैं: PM2.5, 0.2 माइक्रोन तक के सूक्ष्म कण जो फेफड़ों में घुसकर गंभीर रोग पैदा कर सकते हैं और धुएँ का स्तर, वायुमंडलीय धुएँ की सांद्रता, जो अक्सर सर्दियों में औद्योगिक उत्सर्जन और वाहनों के धुएँ से बढ़ जाती है। ये दो मुख्य संकेतक वायु गुणवत्ता के पैमानों में सबसे अधिक प्रयोग होते हैं।
वायु गुणवत्ता सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक सामाजिक-अर्थशास्त्रीय चुनौती है। जब PM2.5 या धुएँ का स्तर सीमा मानकों से ऊपर जाता है, तो स्कूल और ऑफिस में लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ होती है, अस्थमा जैसी बीमारियों में बढ़ोतरी होती है, और आर्थिक उत्पादन में गिरावट आती है। यही कारण है कि सरकारें वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) प्रकाशित करती हैं: यह दिखाने के लिए कि कितनी तेज़ी से हमें उपाय अपनाने चाहिए।
वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाना कई कदमों की मांग करता है: स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग, सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन, औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना और हर घर में छोटे‑छोटे कदम जैसे कपड़े सुखाने के लिए धूप का प्रयोग या एजीवो का चयन। इन उपायों में प्रत्येक का अपना प्रभाव है, और जब एक साथ मिलते हैं तो वायु प्रदूषण पर बड़े‑पैमाने पर बदलाव संभव हो जाता है।